नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण, बचाव और उपचार !
हमारे देश में जन्म लेने वाले अधिकांश नवजात शिशु पीलिया यानी जॉन्डिस से ग्रसित हो जाते हैं I वैसे तो पीलिया एक साधारण बीमारी है लेकिन सही समय पर उपचार नहीं होता है तो यह बीमारी बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास को अवरुद्ध कर देती है जिसके कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और कई बार तो शिशु की जान भी जा सकती है I इसलिए हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से नवजात शिशु को होने वाले पीलिया के कारण, लक्षण, बचाव के उपाय और अन्य सावधानियां बता रहे हैं जिससे आप अपने शिशु को इस बीमारी से बचाने के उपाय कर सके और नवजात शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सके I
पीलिया क्या है?
- अगर पीलिया के सामान्य लक्षणों को देखे तो इसमें शिशु की त्वचा और आंखें पीली हो जाती है। आमतौर पर ये लक्षण शिशु के जन्म के तीन दिन बाद से दिखाई देने लगते हैं।
- जब शिशु के खून में बिलीरूबिन की मात्रा अधिक हो जाती है। लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने पर शरीर में पीले रंग के द्रव्य की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके कारण बिलीरुबीन की मात्रा बढ़ जाती है और शिशु का यकृत इस बढ़ी हुई मात्र को हटाने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता है, तब यह बीमारी होती है।
- शिशु के खून में इन्फेक्शन की वजह से पीलिया हो सकता है I
- लीवर में किसी भी प्रकार की खराबी से पीलिया हो सकता है I
- हाइपोक्सिया यानि शरीर में ऑक्सीजन का कम स्तर होने या एंजाइम की कमी से बिलीरुबीन हो सकता है I
- अगर शिशु की माँ को डायबिटीज है तो शिशु को पीलिया हो सकता है I
शोध के अनुसार यह बीमारी समय पर जन्म लेने वाले शिशु की तुलना में समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं में होने का खतरा अधिक रहता है I
नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण:-
नवजात शिशु में पीलिया के लक्षण जन्म के 2 या 3 दिन के बाद से ही विकसित होने लगते हैं, परन्तु कुछ परिस्थितियों में जैसे माँ के खून का ग्रुप नेगेटिव हो और शिशु का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव हो तो पीलिया के लक्षण शिशु के जन्म के कुछ घंटों बाद ही दिखाई देने लगते हैं।
इसके अलावा आप निम्न लक्षण देखकर आप पीलिया के लक्षण का पता लगा सकते है:-
- शिशु में पीलिया का सबसे आम लक्षण है त्वचा और आंखों का पीला पड़ जाना I
- पेशाब का रंग पीला हो जाता है वैसे तो स्वस्थ नवजात शिशु का पेशाब रंगहीन होता है।
- शिशु का वजन नहीं बढ़ता है I
- चिड़चिड़ापन या शिशु को बुखार हो जाती है I
- शिशु लगातार रोता रहता है और दूध नही पीता है I
पीलिया का उपचार:-
नवजात शिशु में बिलीरूबिन के बढ़े हुए स्तर को कम करने के लिए निम्न तरह के उपचार किये जाते है-
- फोटोथेरेपी (Photothrephy)- नवजात शिशु के शरीर में बिलीरुबिन के बढ़े हुए स्तर को कम करने का आसान तरीका है । इस थेरेपी के माध्यम से शिशु के शरीर पर नीले-हरे रंग के स्पेक्ट्रम के प्रकाश में रखा जाता है, जिसके प्रभाव से बिलीरुबिन के अणुओं के आकार और संरचना में कमी आने लगती है और लाल रक्त कोशिकाओं का टूटना बंद हो जाता है I
- एक्सचेंज ब्लड ट्रांसफ्यूजन (Exchange blood transfusion)– जब शिशु के शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा अत्यधिक हो जाती है और फोटोथेरेपी या अन्य उपचारों से शिशु के शरीर में बिलीरुबिन का लेवल कम नही होता है तब बल्ड ट्रांसफ्यूजन का सहारा लिया जाता है। इसके तहत ब्लड की थोड़ी मात्रा को शिशु के शरीर निकाला जाता है, बिलीरूबिन और एंटी बॉडी के स्तर को कम किया जाता है और फिर उतनी ही मात्रा शिशु के शरीर में ब्लड स्थांतरित किया जाता है।
- इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन (Intravenous Immunoglobulin)- इसके माध्यम से शिशु के शरीर से एंटी बॉडी के स्तर को कम करने और पीलिया को कम करने के लिए इंजेक्शन लगाया जाता है I
इसके अलावा आप ये सावधानी रखकर शिशु को पीलिया से बचा सकते है-
- शिशु को लगातार स्तनपान करवाते रहे, शिशु को दिन में 8 से 12 बार स्तनपान कराएं।
- शिशु के जन्म के पहले सप्ताह में शिशु की गहन निगरानी रखे और पीलिया के लक्षण नजर आते ही तुरन्त डॉक्टर से संपर्क करें।
सुबह के समय शिशु को सूर्य की धूप में ले जाये, यह नवजात शिशु के शरीर से बिलीरुबिन के स्तर को कम करने का कारगर उपाय साबित हो सकता हैं। शिशु को दिन में कम से कम 2 बार 10- 15 मिनट के लिए हल्की रोशनी या धूप में जरूर रखें। लेकिन इसके साथ ही आपको सतर्कता भी बरतनी है कि सीधे सूर्य की रोशनी में बच्चे को नुकसान ना हों ।
इसके अलावा आप पीलिया से जुड़ी मिथक बातों पर यकीन ना करे जिनकी प्रामाणिकता अब तक सिद्ध नहीं हो पाई है जैसे तन्त्र-मंत्र, झाड़ा दिलाना आदि I इसलिए किसी तरह के मिथकों पर भरोसा करने की बजाय डॉक्टर के द्वारा बताए सुझावों और निर्देशों का ही पालन करें।
पीलिया के लक्षणों का आसानी से पता नहीं लगता है इसलिए आपको इसके लक्षण दिखे तो तुरंत नवजात शिशु को डॉक्टर के पास लेकर जाये, बिलीरुबिन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाने के कारण शिशु की जान को खतरा हो सकता है I
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